Sacred Knowledge

विधि के फलग्रहण के सामन्य नियम

किसी भी विधि का फल या तो विधिवाक्य में ही होगा यथा अग्निहोत्रं जुहूयात् स्वर्गकामः। जहां फल न दिया हो वहां 'विश्वजिन्न्याय' से स्वर्गफल मान लिया जाता है, यत्र च न फलश्रुतिस्तत्र विश्वजिन्न्याय इति। जहां विधि में फल न हो किन्तु फलश्रुति हो वहां फलश्रुति में दिया फल अर्थवाद को ध्यान में रख 'रात्रिसत्रन्याय' से ग्रहणीय होता है।

शीघ्रफलदायनी भगवती दुर्गा

दुर्गा कलि काल में भी शीघ्रफलदायनी है। इसके विभिन्न स्वरूपों में विभिन्न शक्तियों निहित हैं। गृहस्थ साधकों के लिए ये कल्पवृक्ष है। माहिष बलि से एवं महिष के सिर को अर्पित करने से शीघ्र प्रसन्न होती है। गढवाल में एक ​लोकोक्ति है कि भगवती को प्रसन्न करना हो तो उसे भैंस का मुण्ड अर्पित कर दो।

कुम्भशिविर प्रयागराज

आप सभी साधको को सूचित करना है कि कुम्भ के आयोजन में इस बार अर्धत्र्यम्बमठ कामाख्या का शिविर भी पूज्य गुरुदेव आचार्य राजेश बेंजवाल जी के तत्वाधान में लग अनेक तिथियों पर अन्यान्य अनुष्ठान एवं कार्यक्रमों में अनेक अतिथियों ने आने हेतु सहर्ष सहमति दे दिया है !