विधि के फलग्रहण के सामन्य नियम
किसी भी विधि का फल या तो विधिवाक्य में ही होगा यथा अग्निहोत्रं जुहूयात् स्वर्गकामः। जहां फल न दिया हो वहां 'विश्वजिन्न्याय' से स्वर्गफल मान लिया जाता है, यत्र च न फलश्रुतिस्तत्र विश्वजिन्न्याय इति।
जहां विधि में फल न हो किन्तु फलश्रुति हो वहां फलश्रुति में दिया फल अर्थवाद को ध्यान में रख 'रात्रिसत्रन्याय' से ग्रहणीय होता है।