अहं ब्रह्मास्मि, True Identity and The Ship of Theseus
बौद्धों का दर्शन है कि संसार में कुछ भी अपरिवर्तनशील नहीं है। सबकुछ बदल रहा है, अर्थात सबकुल क्षणिक है। विज्ञान के अनुसार भी 5 से 7 वर्ष में शरीर का प्रत्येक अणु परमाणु परिवर्तित हो जाता है। एटामिक लेवल पर सबकुछ बदल जाता है। इसलिए बौद्ध दर्शन इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि There is no true self. सबकुछ परिवर्तनशील एवं क्षणिक है, चेतना भी। अभी जो चेतना है वह अगले क्षण नहीं है, अगले क्षण जो चेतना है वह नई चेतना है।
यहीं एक दार्शनिक paradox भी है, The Ship of Theseus paradox. जो यह इस प्रश्न को उठाती है कि क्या वह वस्तु वही रहती है अगर जिन अवयवों से वह बनी है समय के साथ यदि व सारे परिवर्तित कर दिये जायें?
नये संस्करण में इसे कुछ और सम्वर्द्धित कर दिया गया, कि एक Ship है The Ship of Theseus. अब समय समय पर इसके सारे अवयव करते रहे। जो जो इसके अवयव परिवर्तित किये गये उनसे एक नया Ship बनाया गया। एक समय ऐसा आया कि सारे अवयव परिवर्तित कर दिये गये। कुछ भी पुराना नहीं बचा। और उन सारे पुराने अवयवों को जोडकर, जो कि he Ship of Theseus से बदले गये थे, वैसा ही Ship बनाया गया। अब वास्तविक Ship of Theseus कौन है?