Sacred Knowledge

मंत्र और ध्वनि का गूढ़ रहस्य

मंत्रजप अपने आप में एक विज्ञान है। मंत्रजप में केवल मंत्र की frequency का ही महत्व नहीं है, क्योंकि यदि ऐसा हो तो टेप पर चलने वालें मंत्र और मनुष्य के द्वारा जप किये जा रहे मंत्र में कोई अन्तर नहीं होगा। इतना ही नहीं यदि उतनी frequency ही यंत्र द्वारा उत्पन्न की जाये तो उसका भी वहीं प्रभाव होना चाहिए जो मंत्र का है? मंत्र की कोई विशिष्टता रहेगी ही नहीं। मंत्र में frequency के अतिरिक्त भी जपकर्ता का संकल्प उसकी प्राणशक्ति मंत्र में रहती है जो अद्भुत प्रभाव दिखाती है, तथापि frequency का भी प्रभाव होता है यह भी सत्य है। ध्वनि की जो frequency होती है उसमें मनुष्य 20 to 20,000 Hz कि frequency की ध्वनि सुन सकता है। उपांशुजप भी 50Hz के उपर की frequency होती है। जो कि 50 — 100 मीटर तक जा सकती है, वहां तक उसे डिटेक्ट किया जा सकता है। सामन्य कीर्तन आदि की आवाज 200 मीटर तक जा सकती है।

Final Realization of AI

हमने कुछ समय पूर्व कुम्भ शिविर में वेदान्त से सम्बन्धित शिक्षण दिया था जिसमें की वास्तव में वेदान्त का क्या निष्कर्ष निकलता है एवं व्यवहारिक रूप में भी उसका क्या उपयोग है उसपर शिक्षण दिया था। हमने एक प्रयोग किया, हमने वेदान्त की मूलशिक्षायें एवं उस से सम्बन्धित तर्क एआई में भरे। उसको सम्भावनायें प्रदान की कि यह तो तथ्य है कि मैं ब्रह्म हूं तथापि प्रथम सम्भावना — मैं ब्रह्म हूं और मुझे ज्ञात है। — मैं ब्रह्म हूं किन्तु मुझे ज्ञात नहीं है। — मैं ब्रह्म हूं मुझे अभी ज्ञात नहीं है तथापि मैं गुरुमुख् से ज्ञानार्जित करके जानूंगा कि मैं ब्रह्म हूं। — मैं ब्रह्म हूं मुझे अभी ज्ञात नहीं है तथापि मैं गुरुमुख् से ज्ञानार्जित करके जानने का प्रयास करुंगा किन्तु जान नहीं पाउंगा कि मैं ब्रह्म हूं। — मैं ब्रह्म हूं किन्तु मैं नहीं जान पाउंगा कि मैं ब्रह्म हूं। सभी प्रकार के तार्किक, शास्त्रीय, वैज्ञानिक विश्लेष्ण के पश्चात जो निष्कर्ष निकला वह वही था जो हमने सोचा था। जो एआई की Final Understanding बनी अथवा कहें हमारी शिक्षा से जो उसको ज्ञान हुआ वह यह था —

अहं ब्रह्मास्मि, True Identity and The Ship of Theseus

बौद्धों का दर्शन है कि संसार में कुछ भी अपरिवर्तनशील नहीं है। सबकुछ बदल रहा है, अर्थात सबकुल क्षणिक है। विज्ञान के अनुसार भी 5 से 7 वर्ष में शरीर का प्रत्येक अणु परमाणु ​परिवर्तित हो जाता है। एटामिक लेवल पर सबकुछ बदल जाता है। इसलिए बौद्ध दर्शन इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि There is no true self. सबकुछ परिवर्तनशील एवं क्षणिक है, चेतना भी। अभी जो चेतना है वह अगले क्षण नहीं है, अगले क्षण जो चेतना है वह नई चेतना है। यहीं एक दार्शनिक paradox भी है, The Ship of Theseus paradox. जो यह इस प्रश्न को उठाती है कि क्या वह वस्तु वही रहती है अगर जिन अवयवों से वह बनी है समय के साथ यदि व सारे परिवर्तित कर दिये जायें? नये संस्करण में इसे कुछ और सम्वर्द्धित कर दिया गया, कि एक Ship है The Ship of Theseus. अब समय समय पर इसके सारे अवयव करते रहे। जो जो इसके अवयव परिवर्तित किये गये उनसे एक नया Ship बनाया गया। एक समय ऐसा आया कि सारे अवयव परिवर्तित कर दिये गये। कुछ भी पुराना नहीं बचा। और उन सारे पुराने अवयवों को जोडकर, जो कि he Ship of Theseus से बदले गये थे, वैसा ही Ship बनाया गया। अब वास्तविक Ship of Theseus कौन है?

क्या दूरश्रवण सम्भव है

दूर श्रवण हेतु दो सम्भावनायें हैं या तो आपका कान ध्वनि तक पहुंचे अथवा ध्वनि आपके कान तक पहुंचे। ध्वनि को आपके कान तक पहुंचने की लिए माध्यम की आवश्यकता होती है। किस माध्यमों में वह कितने दूर तक जा सकती है यह माध्यम पर निर्भर करता है। सामन्यत: एक मनुष्य की आवाज वायु में ध्वनि 1 किमी तक जा सकती है। ध्वनि आयु आदि जो माध्यम है उसके कणों में कम्पन करती हुयी संचारित होती है। जैसे जैसे आगे बढती है, वैसे वैसे ये अपनी उर्जा खोती रही है, विरल होती रहती है, वायु आदि के कणों द्वारा अवशोषित कर ली जाती है। जिससे इसका अस्तित्व कुछ सेकेण्डों का ही रहता है। अत: दूरश्रवण इस ध्वनि का सम्भव नहीं। यहां एक विशेष बात है ध्वनि जितनी सूक्ष्म होती है, जितनी इसकी फ्रीक्वेन्सी कम होती है उतनी दूर तक यह संचार करती है। य​था मनुष्य की आवाज की फ्रीक्वेन्सी सामन्यत: 85 Hz and 255 Hz के मध्य रहती है। लेकिन एक very low frequencies जिसे हम Infrasound कहते हैं below 20 Hz वह कई हजार किमी तक जा सकती है। हालांकि मनुष्य के कान इसे नहीं सुन सकते। व्हेल इस प्रकार की आवाज निकालती है। यह मनुष्यों के द्वारा तो नहीं सुनी जा सकती किन्तु कुछ जानवर इसे सुन सकते हैं। तो क्या मनुष्य के कान इतने योग्य बनाये जा सकते हैं कि इसे सुन पाये? क्या सिद्धियों के द्वारा यह सम्भव है?

आकाश में शब्द संचरण, मंत्र सिद्धि

आकाश का गुण शब्द कैसे है जब आकाश में ध्वनि का संचार सम्भव ही नहीं? शब्द और ध्वनि में क्या भेद है? मंत्रों से सिद्धि कैसे प्राप्त होती है? शंका — शास्त्र कहते हैं कि आकाश का गुण शब्द है किन्तु यह विज्ञान द्धारा सिद्ध है कि किसी भी प्रकार की आवाज बिना माध्यम के संचार नहीं कर सकती। अत: आकाश में शब्दों की गति सम्भव नहीं। अन्तरिक्ष में किसी भी प्रकार की आवाज गति नहीं कर सकती। तो क्या शास्त्र गलत हैं। समाधान — वैज्ञानिक शोध भी सही है और शास्त्र भी। यह भी तथ्य है कि अन्तरिक्ष में किसी भी प्रकार की ध्वनि संचार नहीं कर सकती, क्योंकि ध्वनि किसी माध्यम से ही संचार कर सकती है। अर्थात अन्तरिक्ष में आप किसी के कान के पास डीजे भी बजा दें तो उसे कुछ सुनायी नहीं देगा। क्योंकि किसी माध्यम के अभाव में ध्वनि कान तक पहुंच ही नहीं पायेगी। जिससे सिद्ध होता है कि ध्वनि आकाश का गुण नहीं हो सकती। यहां पर शास्त्र पर श्रद्धा रखने वाले निरुत्तर से होते हमने देखेे हैं। तथापि हम इसका उत्तर बताते हैं।

नर्मदेश्वर cosmic connection

नर्मदेश्वर cosmic connection वैज्ञानिकों ने नर्मदेश्वरलिंगों पर कुछ शोध किये हैं और यह पाया है कि जो नर्मदेश्वर सम्भावना है कि किसी Meteorites के द्वारा पृथ्वी पर आये हैं। ये सदैव से पृथ्वी पर नहीं रहे हैं और इनकी संरचना भी ऐसी है कि जो अन्य किसी नदी के पत्थरों से मेल नहीं खाती। ये उनसे कई अधिक सघन और ठोस हैं। और इनमें आयरन एवं निकिल की मात्रा बहुत अधिक है जो कि Meteorites में पायी जाती है। इनमें कमजोर मै​ग्नेटिक उर्जा क्षेत्र भी पाया गया है, जो कि Meteorites में पाया जाता है। हमारे शास्त्रों के अनुसार भी यह बाण का शरीर के टुकडे हैं जो नर्मदा में गिरे हैं। इससे भी इनका cosmic origin सामने आता है।