मृत्तिका शिवलिंग में पंचसूत्र
नमश्शिवाय
क्या मृत्तिका शिवलिंग में योनि आदि बनानी चाहिए?
जैसा कि शिवमहापुराण में स्पष्ट कहा गया है:
यथाकथञ्चिद्विधिना रम्यं लिङ्गं प्रकारयेत्।
पञ्चसूत्रविधानं च पार्थिवे न विचारयेत्॥
अर्थात, पार्थिव (मृत्तिका) शिवलिंग में पंचसूत्र विधान नहीं करना चाहिए।
पंचसूत्र का महत्व
शिला, स्फटिक आदि से शिवलिंग निर्माण में पंचसूत्र का ध्यान रखना चाहिए। वीरशैव संप्रदाय में इसका बड़ा महत्व है। पंचसूत्र विधि से निर्मित लिंग को विशेष महत्व दिया जाता है। क्रियादीक्षा के समय आचार्य द्वारा शिष्य को यही ‘पंचसूत्रलिंग’ प्रदान किया जाता है, जो आध्यात्मिक साधना का आधार बनता है।
शिवलिंग के मुख्य भाग
- बाण: लिंग का गोलाकार ऊपरी भाग
- पीठ: बाण को आधार देने वाला निचला भाग
- गोमुख (जलहरी): जल निकासी वाला भाग, जिसे योनि भी कहा जाता है
पंचसूत्री निर्माण प्रक्रिया
निर्माण के दौरान:
- पहले बाण तैयार किया जाता है।
- बाण के वर्तुल परिमाण के अनुसार पीठ की लंबाई और चौड़ाई को निर्धारित किया जाता है।
- अंत में, बाण के वर्तुल के आधे माप के अनुरूप गोमुख बनाया जाता है।
निश्चित अनुपात:
- बाण का वर्तुल = पीठ की लंबाई = पीठ की चौड़ाई
- गोमुख का आकार = बाण के वर्तुल का आधा
महत्वपूर्ण निष्कर्ष
- मृत्तिका शिवलिंग में पंचसूत्र विधान नहीं करना चाहिए।
- गलत अनुपात से निर्मित लिंग हानिप्रद हो सकता है।
- घर में केवल बाण (लिंग का ऊपरी भाग) रखना ही उचित है।
- अन्यत्र से किसी भी माप-तौल का पंचसूत्री लिंग ग्रहण करना उचित नहीं।
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