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यज्ञादि अग्निक्रियाओं में अग्निचक्र का ज्ञान

🔥 अग्निचक्र की गणना विधि 🔥

नमश्शिवाय!

यज्ञादि कर्मों के लिए अग्निचक्र का ज्ञान आवश्यक है। इसकी गणना विधि इस प्रकार है:

अग्नि चक्र के ज्ञान हेतु सूर्य नक्षत्र से चन्द्र नक्षत्र तक गणना करनी चाहिए, अर्थात सूर्य नक्षत्र से चन्द्र नक्षत्र को घटा देना चाहिए। यदि चन्द्र नक्षत्र की संख्या सूर्य से पूर्व हो तो चन्द्रनक्षत्र में 27 जोडकर उसे सूर्य नक्षत्र संख्या से घटा देना चाहिए। जितना गणना करके आये उसमें 3 का भाग दे देना चाहिए। जो लब्धि प्राप्त हो उसे इस अग्निचक्र में देखें, यथा लब्धि 7 हो तो 7: "🟡 बृहस्पति - अग्निचक्र बृहस्पति में होने से यज्ञादि कर्म अत्यन्त कल्याणप्रद"। यज्ञ करना अत्यन्त अत्यन्त कल्याणप्रद होगा।

**सूर्य नक्षत्र से चन्द्र नक्षत्र तक** गणना करें:
चन्द्र नक्षत्र - सूर्य नक्षत्र
यदि चन्द्र नक्षत्र पहले हो तो उसमें **27 जोड़कर** गणना करें।
फिर **3 से भाग** दें और जो लब्धि मिले, यदि शेष शून्य हो, उसी के अनुसार अग्निचक्र निर्धारित करें।
यदि शेष प्राप्त हो तो लब्धि में एक जोडकर उसी के अनुसार अग्निचक्र निर्धारित करें।

📜 अग्निचक्र फलादेश 📜

कैलाशे लभते सौख्यं गौर्या च सुख सम्पदः । वृषभेऽभीष्ट सिद्धिः स्यात् सभायां संतापकारिणी।
भोजने च भवेत् पीड़ा क्रीडायां कष्टमेव च । श्मशाने मरणं ज्ञेयं फलमेवं विचारयेत्।।
🔥 सूर्य - अग्निचक्र सूर्य में होने से यज्ञ शोकप्रद
🟢 बुध - अग्निचक्र बुध में होने से यज्ञ सम्पतिप्रद
शुक्र - अग्निचक्र शुक्र में होने से यज्ञ धनदायक
🪐 शनि - अग्निचक्र शनि में होने से यज्ञ पीड़ादायक
🌙 चन्द्र - अग्निचक्र चन्द्र में होने से यज्ञ लाभदायक
🔴 मंगल - अग्निचक्र मंगल में होने से यज्ञ बन्धनकारक
🟡 बृहस्पति - अग्निचक्र बृहस्पति में होने से यज्ञ अत्यन्त कल्याणप्रद
🖤 राहु - अग्निचक्र राहु में होने से यज्ञ हानिप्रद
🔵 केतु - अग्निचक्र केतु में होने से यज्ञ प्राणघातक

🔍 गणना उदाहरण

आज यदि देखें तो **सूर्य नक्षत्र पूर्वभाद्रपद** और **चन्द्र नक्षत्र कृत्तिका** है।
अंतर: पूर्वभाद्रपद से कृत्तिका = 6
भाग: 6 ÷ 3 = लब्धि 2 शेष 0
**अग्निचक्र बुध पर आया**, अतः यज्ञ शुभ होगा:

🟢 बुध - अग्निचक्र बुध में होने से यज्ञ सम्पतिप्रद।

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